Tuesday, March 1, 2011

।। इतने फूल खिले ।।


फूलों की जब चाह मुझे थी,
तब कॉटें भी नहीं मिले।

जब शशि की थी चाह मुझे,
तब जुगनू भी न कहीं निकले।

आशा और निराशा स‌ब कुछ,
खो मैं जग में घूम रहा।

अब पग-पग पर मिलते मुझको,
क्यों ये इतने फूल खिले।



रचनाकार (कवि) : चन्द्र कुँवर बर्त्वाल
स‌ौजन्य : पहाड़, नैनीताल।