फूलों की जब चाह मुझे थी,
तब कॉटें भी नहीं मिले।
तब कॉटें भी नहीं मिले।
जब शशि की थी चाह मुझे,
तब जुगनू भी न कहीं निकले।
तब जुगनू भी न कहीं निकले।
आशा और निराशा सब कुछ,
खो मैं जग में घूम रहा।
खो मैं जग में घूम रहा।
अब पग-पग पर मिलते मुझको,
क्यों ये इतने फूल खिले।
क्यों ये इतने फूल खिले।
रचनाकार (कवि) : चन्द्र कुँवर बर्त्वाल
सौजन्य : पहाड़, नैनीताल।
सौजन्य : पहाड़, नैनीताल।